अब कहाँ विकट अँधेरे में” पढ़िए, गौतम कुमार की एक भावनात्मक कविता जो अंधकार में उजाले की खोज, खोए हुए समय और पछतावे की भावनाओं को छूती है। यह कविता उन बीते लम्हों की याद दिलाती है जो खुशी और उम्मीद से भरे थे, और वर्तमान के अंधकारमय क्षणों से उनका मुकाबला करती है।
अब कहाँ विकट अँधेरे में,
उजाले ढूंढ़ा करते हो ।
फिर आश बढ़ा उन लासों में,
इन्सानियत ढूंढ़ा करते हो ।
बुनियाद बानी थी फूसों की,
महलों को ताका करते हो ।
फिर आज घने अँधेरे में ,
राहों को देखा करते हो ।
कल आधि रात,अंधेरे में ,
हम घर से निकला करते थे ।
आज उन्ही नाज़ अंधियारे में,
कुछ चीखें दबते रहते है ।
हर अमन का फूल खिला करता था,
गुलशन के गलियारों में ।
लगा के झोंका उड़ रहा,
हर साँस उधर मस्ताने में ।
फिर आँखों के नम सायें में कुछ
राह भी ताका करते है-
कभी आएगा वो,लाएगा वो
फिर से हमे हँसायेगा वो
चंद लम्हों में जो छिन गया ,
समझ,फिर कभी न आएगा वो ।।
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अँधेरे में उजाले की खोज: समय और यादों की बातें
नमस्ते दोस्तों,
अक्सर ऐसा होता है न कि हम जब सबसे ज्यादा परेशान और घिरे हुए महसूस करते हैं, तब हमें एक अजीब सा जादू दिखाई देने लगता है। ये कविता “अब कहाँ विकट अँधेरे में” इसी एहसास को व्यक्त करती है।
देखो, कैसे हम अँधेरे में उजाले की खोज करते रहते हैं, और उन लाशों में इंसानियत ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं। मानो हमें सच्चाई और उम्मीदें वहीं मिलेंगी जहां हमें उम्मीद नहीं थी। और जब हम बड़े महलों में फूस की बुनियाद देखने लगते हैं, तो हम ये भूल जाते हैं कि असल सुंदरता शायद उन सादगी भरे अँधेरे में छिपी है।
कभी आधी रात को घर से निकलते थे, अंधेरे में ही अपने सपनों की खोज करते थे। आज वही अँधेरा हमें डराने लगता है, और चीखें दब जाती हैं जो कभी हमारे दिल की आवाज़ थी। हमारी आँखों के नम साए अब हमें बताने लगे हैं कि कल जो लम्हे हम खुशी से जी सकते थे, वो अब सिर्फ यादें बन गए हैं।
याद करो, हर अमन का फूल कैसे खिलता था, गुलशन की गलियारों में खुशबू बिखरती थी, और सांसों में मस्तियाँ छिपी होती थीं। लेकिन अब वो सब लम्हे कहीं खो गए हैं, और हम बस उम्मीद में जी रहे हैं कि शायद कभी वो सब वापस आएगा और हमें फिर से हंसाएगा।
यह कविता आपको याद दिलाना चाहती है कि समय कितना भी कठिन क्यों न हो, हमें हर पल का आनंद लेना चाहिए। किसी भी खोटी उम्मीद के पीछे भागने की बजाय, हमें आज के पल को जीना चाहिए। क्योंकि जो लम्हे गुज़र गए, वो कभी लौट कर नहीं आएंगे। तो चलिए, हंसिए, जीएं और उन अद्भुत लम्हों को संजोएं जो हमारे पास हैं।
आपका दोस्त,
गौतम कुमार